पर्वत प्रदेश में पावस | कविता | सुमित्रानंदन पंत | SUMITRANANDAN PANT | CBSE | CLASS X |HINDI| POEM

पर्वत प्रदेश में पावस | कविता | सुमित्रानंदन पंत | SUMITRANANDAN PANT | CBSE | CLASS X |HINDI| POEM @hindiacademy2024 Website Link : Google Form Link : पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश। मेखलाकार पर्वत अपार अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़, अवलोक रहा है बार-बार नीचे जल में निज महाकार, जिसके चरणों में पला ताल दर्पण-सा फैला है विशाल! गिरि का गौरव गाकर झर-झर मद में नस-नस उत्तेजित कर मोती की लड़ियों-से सुंदर झरते हैं झाग भरे निर्झर! गिरिवर के उर से उठ-उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर हैं झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर। उड़ गया, अचानक लो, भूधर फड़का अपार पारद के पर! रव-शेष रह गए हैं निर्झर! है टूट पड़ा भू पर अंबर! धँस गए धरा में सभय शाल! उठ रहा धुआँ, जल गया ताल! यों जलद-यान में विचर-विचर था इंद्र खेलता इंद्रजाल। @HindiKavita @hindigrammar-beginnerstoad2058 @PebblesHindi @infobellshindirhymes @abp_live @suren ki hindi class aur kavitaye @vtvhindi8353
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